Tuesday 17 September 2019

पुरानी डायरी...

पुराने डायरी के पन्ने
खुल गए अपने आप ही
मेरे गुजरने के बाद,
थे स्याही से लिखे हुए
मेरे कुछ अल्फ़ाज़
कुछ जज़्बात
कुछ हकीकत
कुछ सपने
कुछ यादें
कुछ भूले हुए
कुछ भुलाये हुए
कुछ मिटे हुए
कुछ मिटाये हुए
कुछ बूझे हुए
कुछ बुझाये हुए
कुछ मुरझे हुए
तो कुछ मुरझाये हुए
मेरे हकीकत की तरह
पाए मैंने
कबाड़ी के ढेरों में......


ऐ साहिर,
तू लाजवाब हैं
लाजवाब रहेंगा
अंत तक....

- सुरेश तु. सायकर